BAFTA स्क्रीनिंग में छाई मन्नू क्या करेगा : निर्देशक संजय त्रिपाठी बोले- “हमारी कहानी ने सीमाओं से परे अपनी आवाज़ पा ली है”

भारतीय फिल्म मन्नू क्या करेगा (MANNU KYA KAREGA) ने BAFTA स्क्रीनिंग में धूम मचा दी है। निर्देशक संजय त्रिपाठी ने कहा कि हमारी कहानी ने सीमाओं से परे जाकर अपनी आवाज़ पा ली है। जानिए फिल्म की कहानी, संदेश और ग्लोबल रिस्पॉन्स।


परिचय

भारतीय सिनेमा लगातार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी पहचान मजबूत कर रहा है। हाल ही में फिल्म “मन्नू क्या करेगा” ने BAFTA स्क्रीनिंग (ब्रिटिश एकेडमी ऑफ फिल्म एंड टेलीविजन आर्ट्स) में शानदार उपस्थिति दर्ज की। इस मौके पर निर्देशक संजय त्रिपाठी ने कहा—

“हमारी कहानी ने सीमाओं से परे अपनी आवाज़ पा ली है।”

यह कथन न केवल फिल्म के महत्व को दर्शाता है बल्कि यह भी साबित करता है कि भारतीय कहानियां अब विश्व पटल पर गंभीरता से सुनी जा रही हैं।


फिल्म का परिचय: मन्नू क्या करेगा

मन्नू क्या करेगा एक ऐसी कहानी है, जो आम इंसान की जिंदगी, संघर्ष और सपनों को गहराई से छूती है।

  • यह फिल्म एक साधारण लड़के मन्नू की कहानी है, जिसके जीवन के छोटे-छोटे फैसले बड़े सामाजिक प्रश्न खड़े करते हैं।
  • फिल्म समाज, रिश्तों और मानवीय संवेदनाओं के बीच से निकलने वाले सवालों को उठाती है।
  • खास बात यह है कि यह कहानी भारत की मिट्टी से जुड़ी है लेकिन इसकी गूंज दुनिया भर के दर्शकों को जोड़ती है।

BAFTA स्क्रीनिंग में मिली पहचान

BAFTA स्क्रीनिंग में किसी भारतीय फिल्म का शामिल होना अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। मन्नू क्या करेगा की स्क्रीनिंग ने साबित किया कि भारतीय सिनेमा केवल मसाला एंटरटेनमेंट तक सीमित नहीं है बल्कि सामाजिक और संवेदनशील कहानियों के जरिए भी अंतरराष्ट्रीय दर्शकों को प्रभावित कर सकता है।

  • स्क्रीनिंग के दौरान फिल्म को स्टैंडिंग ओवेशन मिला।
  • दर्शकों ने कहानी की सादगी और गहराई को खूब सराहा।
  • विदेशी समीक्षकों ने कहा कि फिल्म न केवल भारतीय समाज की झलक दिखाती है बल्कि वैश्विक मानवीय मूल्यों को भी सामने लाती है।

निर्देशक संजय त्रिपाठी का विज़न

संजय त्रिपाठी भारतीय सिनेमा में अपनी अलग सोच और संवेदनशील दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं।

  • उनका मानना है कि सिनेमा केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि समाज में परिवर्तन लाने का माध्यम भी है।
  • BAFTA स्क्रीनिंग के बाद उन्होंने कहा: “हमें खुशी है कि हमारी फिल्म ने सीमाओं से परे जाकर अपनी आवाज़ पा ली है। यह सिर्फ भारत की कहानी नहीं, यह हर इंसान की कहानी है।”

उनके इस कथन से साफ है कि मन्नू क्या करेगा किसी खास वर्ग की फिल्म नहीं बल्कि एक यूनिवर्सल मैसेज देने वाली कहानी है।


अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय सिनेमा की बढ़ती ताकत

पिछले कुछ वर्षों में भारतीय फिल्मों ने अंतरराष्ट्रीय फेस्टिवल्स और स्क्रीनिंग्स में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई है। RRR, कांतारा, द कश्मीर फाइल्स और द लंचबॉक्स जैसी फिल्मों ने दिखाया कि भारतीय सिनेमा सिर्फ घरेलू दर्शकों तक सीमित नहीं।

  • मन्नू क्या करेगा का BAFTA स्क्रीनिंग में शामिल होना भी इसी कड़ी का हिस्सा है।
  • यह बताता है कि भारतीय फिल्म निर्माता अब वैश्विक स्तर पर अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे हैं।
  • खासकर यथार्थवादी और मानवीय कहानियों की मांग दुनिया भर में बढ़ी है।

कहानी का वैश्विक संदेश

मन्नू क्या करेगा केवल भारतीय समाज की परछाई नहीं दिखाती बल्कि यह एक ऐसी दास्तान है जिससे हर इंसान जुड़ सकता है।

  • फिल्म सवाल करती है—क्या एक साधारण इंसान की जद्दोजहद दुनिया बदल सकती है?
  • यह बताती है कि संघर्ष चाहे कहीं भी हो, इंसान की भावनाएं और सपने हमेशा एक जैसे होते हैं।
  • यही वजह है कि विदेशों में भी दर्शकों ने इस फिल्म को अपने दिल से स्वीकार किया।

दर्शकों और समीक्षकों की प्रतिक्रिया

  • विदेशी मीडिया ने फिल्म को “ग्लोबल येट लोकल” यानी वैश्विक होते हुए भी जड़ों से जुड़ी हुई बताया।
  • कई समीक्षकों ने इसे भारतीय न्यू वेव सिनेमा की एक मिसाल करार दिया।
  • दर्शकों ने कहा कि यह फिल्म “इंसानियत की आवाज़” है, जो भाषा और संस्कृति से परे जाकर सभी को जोड़ती है।

BAFTA स्क्रीनिंग क्यों है खास?

BAFTA (British Academy of Film and Television Arts) दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित फिल्म प्लेटफॉर्म्स में से एक है। यहां किसी भी फिल्म की स्क्रीनिंग होना अपने आप में बड़ी उपलब्धि है क्योंकि—

  • यह अंतरराष्ट्रीय दर्शकों और फिल्म समीक्षकों तक पहुंच बनाने का मौका देता है।
  • फिल्म को ऑस्कर जैसी बड़ी प्रतियोगिताओं की राह पर ले जा सकता है।
  • भारतीय सिनेमा की छवि को एक नए स्तर पर स्थापित करता है।

निष्कर्ष

मन्नू क्या करेगा ने BAFTA स्क्रीनिंग में जो सफलता हासिल की है, वह भारतीय सिनेमा के लिए गर्व की बात है। यह फिल्म साबित करती है कि अच्छी कहानियों की कोई सीमा नहीं होती। निर्देशक संजय त्रिपाठी का विज़न और टीम का प्रयास यह दर्शाता है कि भारतीय सिनेमा अब केवल भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी उसकी पहचान मजबूत हो रही है।


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